Saturday, December 26, 2009

एक भी मगरमच्छ फंसे नहीं, एक भी छोटी मछली बचे नहीं

कानून किसको कहते है ये हमको मत बताओं बेटा, हम से ज्यादा तुम नहीं जानते होंगे, एक चैनल के रिपोर्टर होने के नाते तुम जो भरोसा मुझे दिला रहे हो उससे बेहतर है कि हम लोगों को उस राठौर की नजरों से दूर रहने दो। ......। हां शायद ये ही शब्द थे...रूचिका गिरोत्रा के पिता के। शिमला के एक मोहल्ले में बेहद अनाम तरीके से अपनी जिंदगी गुजार रहे गिरोत्रा के साथ उनका बेटा कमरे में मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन से जैसे पूरी तरह से अनजान... खामोंशी से छत की ओर ही देख रहा था। घर से भाग कर एक दूसरे राज्य में रह रहे गिरोत्रा साहब से इंटरव्यू लेने की पुरजोर कोशिश की लेकिन वो और उनका बेटा आंसूओं के साथ हाथ जोड़ कर हमसे चले जाने के लिये कहते रहे। ये बात सन 2004 की है जब मैं रूचिका मामले में पुलिस के एडीजी एसपीएस राठौर पर लगे आरोपों को लेकर एक स्टोरी कर रहा था। मैंने चंडीगढ़ में आनंद और उनकी पत्नी मधु से इंटरव्यू कर लिया था, पूरा मामला समझने के बाद मुझे लगा कि इस स्टोरी को अंजाम तक पहुंचाने के लिये जरूरी है कि गिरोत्रा परिवार से मिला जाये। मुझे उनकी तलाश करनी थी। और इसके लिये मैंने पूरे दो दिन का समय लिया। और आखिरकार मैं पहुंच गया था गिरोत्रा फैमली के पास। शायद मेरी एक गलती के लिये आज मुझे गिरोत्रा परिवार माफ कर दे कि मैंने उनके दर्द को कैमरे पर पेश कर दिया था। पूरी खबर को हमने छह मिनट की एक बड़ी स्टोरी में तब्दील किया था। खबर के एक सिरे पर गिरोत्रा परिवार था और दूसरे सिरे पर चंडीगढ़ के पॉश इलाके में पूरी शान से रह रहे राठौर दंपत्ति थे। मैंने कई बार राठौर के घर फोन किया लेकिन पुलिस अधिकारी के रौब दाब से उन लोगों ने मुझ बात करने से इंकार करने के साथ ही मुझे धमकी दी गयी कि अगर खबर में कुछ ही उनके खिलाफ हुआ तो वो मुझे कोर्ट में घसीट लेंगे। लेकिन मैं जिद करके उनके घर चला गया न दरवाजा खुला और न ही कोई जवाब। खैर हमने अपनी खबर पूरी की। जब तक मुझे खबर याद रही तो वर्दी की ताकत और उसके सामने मिमियाते कानून की औकात भी दिखती रही। इसके बाद मैं इस बारे में सिर्फ इसके कि मैंने उस स्टोरी में एक सवाल बड़ी शिद्दत से उठाया था कि अदालत ने जब ये मान लिया कि रूचिका के भाई के खिलाफ दर्ज दर्जन भर कार चोरी के मामले झूठे है तो इस एफआईआऱ को दर्ज करने वाले पुलिस वाले उसमें बयान देने वाला आईओ बरामदगी करने वाली पुलिस पार्टी और कोर्ट में खड़े होकर झूठ बोलने वाले पुलिस वालों के खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता। सवाल अनसुना रह गया।.....
लेकिन एक सप्ताह पहले अदालत का फैसला आया। छह महीने की कैद और 1000 रूपये का जुर्माना राठौर के खिलाफ...। इसके बाद शान से मुस्कुराते हुय़े राठौर की टीवी चैनलों पर आयी तस्वीर ने मुझे रूचिका के पिता के शब्दों को दोबारा याद करा दिया। वो हंसी राठौर के लिये जीत की हंसी थी तो बाकी सबके लिये जहरीली हंसी। तेजी जवान होती एक पीढ़ी के लिये एक ऐसी हंसी जो उनके कानून नाम की किसी भी किताब पर से यकीन को और धुंधला कर रही हैं। खैर इस मामले में बहुत दिन से अंधविश्वास और दुनिया को डराने में जुटे न्यूज चैनलों को एक काम मिला और उन्होंने राठौर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। अब सरकार कह रही है कि राठौर का पदक छीनेंगे उसकी पेंशन रोकेंगे। लेकिन कोई ये नहीं कह रहा है कि उन पुलिस वालों का क्या करेंगे जिन लोगों ने विक्की के खिलाफ दर्जनों मुकदमें दर्ज किये थे। उन पुलिस वालों का क्या करेंगे जो इस बात पर मुहर लगा रहे थे कि देश और कानून नाम की चीज कम से कम पुलिस की वर्दी के लिये नहीं है।
चैनल हल्ला कर रहे है और न्यूजपेपर सवाल करने से बच रहे है। सवाल आज का नहीं है सवाल रूचिका का नहीं है, उस जैसी हजारों मासूम जिंदगियों का है जो रोजाना पुलिसिया जुल्म का शिकार होती है। कोई ये बात क्यों नहीं कर रहा है कि फर्जी मुकदमा बनाना भले कि कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न कहे कत्ल से बड़ा अपराध है। फर्जी गवाही देना किसी बड़ी ठगी से ज्यादा नुकसान करता है। और सबसे बड़ी बात है किसी भी आदमी की जवाबदेही क्यों नहीं हैं। किसी को आज भी हैरत नहीं है कि कौन आदमी है राठौर का साथ देने वाले उनकी जिम्मेदारी क्यों फिक्स नहीं हो रही है। क्योंकि आपके कानून में वो प्रावधान ही नहीं है, अंग्रेजों के इशारे पर देशवासियों की खाल उधेड़ कर उनकी औरतों को बेईज्जत करने वाली पुलिस के पास इतनी ताकत है और जवाबदेही का कॉलम जीरो का हैं। बात सिर्फ जवाबदेही की है अगर ये होती तो उस वक्त के डीजीपी ये कह कर न बच जाते कि मैंने तो उसके खिलाफ रिपोर्ट फाईल कर दी थी, मुख्य सचिव को ये भी याद नहीं कि राठौर को पदक दिया गया तो उस वक्त उन्होंने फाईल पर क्या लिखा था। तत्कालीन गृहमंत्री और मुख्यमंत्री की भी कोई जिम्मेदारी नहीं है। वो बेचारे कह रहे है कि ब्यूरोक्रेसी ने उनको जो लिख कर दिया उन्होंने उस पर साईन कर दिये। यानि रूचिका मामले में आप कुछ हासिल कर पायेंगे और वो कुछ भी नहीं सिवाय इसके कि जीरो बटा लड्डू।

2 comments:

Unknown said...

आप सही हैं, अच्छा लिखा है

http://www.dafaa512.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

विचारणीय आलेख.